सामने होते हुए भी तुझसे दूर रहना..
बेबसी की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी...
मेरी आँखों में आँसू नहीं, बस कुछ "नमी" है..
वजह तू नहीं, तेरी ये "कमी" है..
गिरते हुए आँसुओँ को कौन देखता है
झुठी मुस्कान के दिवानेँ है सब यहाँ...
चंद खामोश ख्याल और तेरी बाते,
खुद से गुफ्तगू में गुज़र जाती हैं रातें...
मोहब्बत किससे और कब हो जाये अंदाजा नही
होता. .
ये वो घर है , जिसका दरवाजा नहीं होता...
बन गया वो सह लिये जिसने तेरे जुल्मो-सितम,
मिट गया वो जिस पै तेरी मेहरबानी हो गई।
माना कि तेरे दीद का काबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक देख, मेरा इन्तिजार देख।
एक वक़्त तक मैं उसकी ज़रूरत बना रहा,
फिर यूँ हुआ की उसकी ज़रूरत बदल गयी !!
करता नहीं तुमसे ये दिल शिकायत मगर,
कहना तो चाहता है की तुम अब वो नहीं रहे !!
तूने ही लगा दिया इलज़ाम-ए-बेवफाई,
मेरे पास तो चश्मदीद गवाह भी तु ही थी...
तुझको आवाज़ दूँ.... और दूर तक तू ना मिले,
ऐसे सन्नाटों से अक्सर..... मुझे डर लगता है
मेरे सजदों में कमी तो न थी ऐ खुदा,
क्या मुझसे भी ज्यादा किसी ने, माँगा था उसे..
न कोई वादा, न कोई यकीन, न कोई उम्मीद
मगर हमें तो तेरा इन्तिजार करना था।
न जाने अश्क-से आंखों में आये हुए हैं
गुजर गया है जमाना, तुझे भुलाए हुए।
कट गया पेड़ मगर ताल्लुक की बात थी,
फिर भी बैठे रहे ज़मीन पर वो परिंदे रात भर ..!
कहो तो थोड़ा वक्त भेज दूँ...??
सुना है तुम्हें फुर्सत नहीं मुझसे मिलने की....!!
बेबस कर देनें की अदा तो उनके फितरत मे शुमार है..
ऐसा नहीं की उन्हें मेरे बेकरारी की ख़बर नहीं होती !!
मालुम था कुछ नहीं होगा हासिल लेकिन...
वो इश्क ही क्या जिसमें खुद को ना गँवाया जाए...!!
नफ़रत करना तो कभी सीखा ही नहीं साहेब
हमने दर्द को भी चाहा है अपना समझ कर....
मैं चुप रहा और गलतफहमियां बढती गयी,
उसने वो भी सुना जो मैंने कभी कहा ही नहीं…
पा तो लेते तुम्हे हम अगर तुम भी ये चाहते,
पर हार गए खुद ही तेरी जीत के वास्ते..!
उसके ना होने से कुछ भी नहीं बदला मुझ में;
बस जहाँ पहले दिल रहता था वहाँ अब दर्द रहता है।
जो मिलते हैं, वो बिछड़ते भी हैं. हम नादान थे,
जो एक दो मुलाकातों को जिंदगी समझ बैठे..!!
दो शब्दो मे सिमटी है मेरी मोहब्बत की दास्तान,
उसे टूट कर चाहा और चाह कर टूट गये..!!
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