ना जाने कैसी नज़र लगी है ज़माने की,
वजह ही नही मिल रही मुस्कुराने की….!
दुआ कौन सी थी हमे याद नही बस इतना याद है,
दो हथेलियाँ जुड़ी थी एक तेरी थी एक मेरी थी..
दर्द सहने की अब कुछ यूँ आदत सी हो गयी है
कि अब दर्द न मिले तो दर्द सा होता है।
अब तो शायद ही कोई मुझसे प्यार करे …
मेरी आँखों में साफ़ नज़र आने लगी हो तुम।
बारिश और मोहब्बत दोनों ही यादगार होती है
फर्क बस इतना है कि एक मे जिस्म भीग जाता है
और दूसरी मे आखें…..
दुःख भोगने वाला तो आगे सुखी हो सकता है
लेकिन दुःख देने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता।
कोई नही आऐगा मेरी जिदंगी मे तुम्हारे सिवा,
एक मौत ही है जिसका मैं वादा नही करता…….. ।।
वो अपनी तन्हाई की खातिर फिर आ मिला मुझसे,
हम नादान ये समझे हमारी दुआओं में असर है।
कोई भी दीवारें मुझे तुमसे मिलने से ना रोक पाती,अगर तू मेरे साथ होती तो
हर यार – यार नहीं होता.. हर यार वफादार नहीं होता..
दिल आने कि बात है.. नही तो सात फेरो के बाद भी प्यार नही होता
हमने माँगा था साथ जिसका वो उम्र भर की जुदाई का ग़म दे गया…
हम जी लेते यादों के सहारे उसकी पर जाते-जाते ज़ालिम भूल जाने की क़सम दे गया !!
गलती इतनी हुई की जान से ज्यादा तुझे चाहने लगे हम ।
क्या पता था की मेरी इतनी परवाह तुझे लापरवाह कर देगी।
तुम ही वजह मेरे खालीपन की.. और.. तुम्ही गूंजते हो मुझमें हरदम !
हम तो नादान हैं क्या समझेंगे उसूल-ए-मोहब्बत !!
बस तुझे चाहा था, तुझे चाहा है और तुझे ही चाहेंगे !!
वो अक्सर मुझसे पूछा करती थी, तुम मुझे कभी छोड़ कर तो नहीं जाओगे,
काश मैंने भी पूछ लिया होता..
वो ना ही मिलते तो अच्छा था… बेकार में मोहब्बत से नफ़रत हो गई…
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